जानकी कुंड
सीतामढी से ५ किलोमीटर पश्चिम पुनौरा में देवी सीता का जन्म हुआ था। मिथिला नरेश जनक ने इंद्र देव को खुश करने के लिए अपने हाथों यहाँ हल चलाया था। इसी दौरान एक मृदापात्र में देवी सीता बालिका रुप में उन्हें मिली। मंदिर के अलावे यहाँ पवित्र कुंड है।
हलेश्वर स्थान: सीतामढी से ३ किलोमीटर उत्तर पश्चिम में इस स्थान पर राजा जनक ने पुत्रेष्टि यज्ञ के पश्चात भगवान शिव का मंदिर बनवाया था जो हलेश्वर स्थान के नाम से प्रसिद्ध है।
पंथ पाकड़
सीतामढी से ८ किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बहुत पुराना पाकड़ का एक पेड़ है जिसे रामायण काल का माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवी सीता को जनकपुर से अयोध्या ले जाने के समय उन्हें पालकी से उतार कर इस वृक्ष के नीचे विश्राम कराया गया था।
जानकी मंदिर
बगही मठ
सीतामढी से ७ किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित बगही मठ में १०८ कमरे बने हैं। पूजा तथा यज्ञ के लिए इस स्थान की बहुत प्रसिद्धि है।
देवकुली (ढेकुली)
ऐसी मान्यता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी का यहाँ जन्म हुआ था। सीतामढी से १९ किलोमीटर पश्चिम स्थित ढेकुली में अत्यंत प्राचीन शिवमंदिर है जहाँ महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है।
बोधायन सर
संस्कृत वैयाकरण पाणिनी के गुरू महर्षि बोधायन ने इस स्थान पर कई काव्यों की रचना की थी। लगभग ४० वर्ष पूर्व देवराहा बाबा ने यहाँ बोधायन मंदिर की आधारशिला रखी थी।
पुनौरा धाम
हलेश्वर स्थान
शुकेश्वर स्थान
सभागाछी ससौला
पुपरी महादेव
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