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  मिथिला इतिहास
 
मिथिला या मिथिलांचल प्राचीन भारत में एक राज्य था. माना जाता है कि यह वर्तमान उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई का इलाका है जिसे मिथिला या मिथिलांचल के नाम से जाना जाता था. मिथिला की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परंपरा के लिये भारत और भारत के बाहर जाना जाता रहा है. इस इलाके की प्रमुख भाषा मैथिली है. धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका उल्लेख रामायण में मिलता है.
 
मिथिला  देश के उत्तर में हिमालय द्वारा घिरा है  , गंगा दक्षिण में कोसी, पूर्व, पर और गंडक पश्चिम में है . 

 मधुबनी ,दरभंगा, मुजफ्फरपुर, चंपारण, सहरसा, पूर्णिया, उत्तर मुंगेर, और उत्तर भागलपुर जिला को मिथिला के नाम से जाना जाता है   नेपाल के तहत तराई जिला और हिमालय के निचले पर्वतमाला के  कई भागो में मैथिलि भाषा  का ही प्रयोग किया जाता है 

 प्राचीन मिथिला की भारतीय सभ्यता के लिए अपने योगदान काफी अधिक है कि देश के अन्य भागों की तुलना में  इसका भी  एक गौरवशाली अतीत है जिनमें से किसी भी सभ्य देश और देश की सत्यपरायणता  को गर्व हो  अपने गौरवशाली अतीत के अवशेष को अभी तक अपने प्राचीन नगरों में देखा जा सकता है . गौतम बुद्ध और वर्धमान महावीर - - और दुनिया के महान शासकों में से एक, सम्राट अशोक ने अपना जीवन  यंही पे जिया . .  

शानदार शहर और मठों, मंदिरों, मंदिरों और विचारकों और प्रचारकों की स्मृति द्वारा पवित्र स्थानों की बनी हुई है हैं. इसकी उपजाऊ मैदानों, जनसंख्या अन्न , फलों की खेती इसकी समृधि में चार चाँद  लगाते है |
 
मिथिलांचल के प्रमुख शहर

मधुबनी
मधुबनी भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक प्रमुख शहर एवं जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली तथा हिंदी यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है। इस जिला का गठन १९७२ में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था।
मधुबनी की मुख्य भाषा मैथिली है जो सुनने में मधुर एवं सरस है। प्राचीन काल में यहाँ के वनों में मधु (शहद) अधिक पाए जाते थे इसलिए जगह का नाम मधु + वनी से मधुबनी हो गया। [१] कुछ लोगों का मानना हैमधुबनी शब्द मधुर + वाणी से विकसित हुआ है।

मधुबनी जिले के प्राचीनतम ज्ञात निवासियों में किरात, भार, थारु जैसी जनजातियाँ शामिल है। वैदिक स्रोतों के मुताबिक आर्यों की विदेह शाखा ने अग्नि के संरक्षण में सरस्वती तट से पूरब में सदानीरा (गंडक) की ओर कूच किया और इस क्षेत्र में विदेह राज्य की स्थापना की। विदेह के राजा मिथि के नाम पर यह प्रदेश मिथिला कहलाने लगा। रामायणकाल में मिथिला के राजा सिरध्वज जनक की पुत्री सीता का जन्म मधुबनी की सीमा पर स्थित सीतामढी में हुआ था। विदेह की राजधानी जनकपुर, जो आधुनिक नेपाल में पड़ता है, मधुबनी के उत्तर-पश्चिमी सीमा के पास है। बेनीपट्टी के पास स्थित फुलहर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहाँ फुलों का बाग था जहाँ से सीता फुल लेकर गिरिजा देवी मंदिर में पूजा किया करती थी। पंडौल के बारे में यह प्रसिद्ध है कि यहाँ पांडवों ने अपने अज्ञातवाश के कुछ दिन बिताए थे। विदेह राज्य का अंत होने पर यह प्रदेश वैशाली गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। १३ वीं सदी में पश्चिम बंगाल के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास के समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रों का बँटवारा हो गया। उत्तरी भाग जिसके अंतर्गत मधुबनी, दरभंगा एवं समस्तीपुर का उत्तरी हिस्सा आता था, ओईनवार राजा कामेश्वर सिंह के अधीन रहा। ओईनवार राजाओं ने मधुबनी के निकट सुगौना को अपनी पहली राजधानी बनायी। १६ वीं सदी में उन्होंने दरभंगा को अपनी राजधानी बना ली। ओईनवार शासकों को इस क्षेत्र में कला, संस्कृति और साहित्य का बढावा देने के लिए जाना जाता है। १८४६ इस्वी में ब्रिटिस सरकार ने मधुबनी को तिरहुत के अधीन अनुमंडल बनाया। १८७५ में दरभंगा के स्वतंत्र जिला बनने पर यह इसका अनुमंडल बना। स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गाँधी के खादी आन्दोलन में मधुबनी ने अपना विशेष पहचान कायम की और १९४२ में भारत छोड़ो आन्दोलन में जिले के सेनानियों ने जी जान से शिरकत की। स्वतंत्रता के पश्चात १९७२ में मधुबनी को स्वतंत्र जिला बना दिया गया।
 
दरभंगा
        
समस्तीपुर

मुजफ्फरपुर

सीतामढी

जनकपुरधाम

सहरसा

कटिहार

पूर्णिया
 


 
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